रबी फसल -गेहूॅ
उर्वरक प्रबंधन
- 15-20 टन गोबर की सड़ी-गली खाद हर दो साल बाद खेत में डालें।
- गोबर की खाद डालने से भूमि की संरचना में सुधार और पैदावार में बढ़ोतरी होती है।
- ऊँची किस्मों के लिए उर्वरक सुझाव
- 40 कि नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से डाले
- ... 20 कि फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से डाले
- ... 20 कि पोटॉश प्रति हेक्टेयर की दर से डाले
- सिंचित बौनी किस्मों के लिए उर्वरक सुझाव
- ... 50-60 कि नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से डाले
- ... 25-30 कि फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से डाले
- ... 25-30 कि पोटॉश प्रति हेक्टेयर की दर से डाले
- असिंचित ािंस्थति में नाइट्रोजन फास्फोरस पोटॉश की पूरी मात्रा डालें
- सिंचित जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए उर्वरक सुझाव
- ... 80-120 कि नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से डाले
- ... 60 कि फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से डाले
- ... 30 कि पोटॉश प्रति हेक्टेयर की दर से डाले।
- ... यदि खरीफ मौसम में धान,गन्ना मक्का या अलसी की फसल ली हो तो 120 कि नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से डाले।
- सिंचित जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए उर्वरक सुझाव
- ... 60-80 कि नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से डाले
- ... 30-40 कि फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से डाले
- ... 25-30 कि पोटॉश प्रति हेक्टेयर की दर से डाले।
- नाइट्रोजन का उपयोग तीन भागों में करना चाहिए
- ... आधी नाइट्रोजन की मात्रा बोनी के समय करें।
- ... शेष 1/4 पहली सिंचाई के समय डाले।
- ... शेष 1/4 दुसरी सिंचाई के समय डाले।
- यदि खरीफ मौसम में फास्फोरस की पूरी मात्रा डाली हो तो रबी में फास्फोरस की आधी मात्रा डालें
- आशिंक सिंचाई उपलब्ध हो एवं अधिकतम दो सिंचाई होने पर नाइट्रोजन फास्फोरस पोटॉश की मात्रा 80:40:20 कि प्रति हेक्टेयर डाले।
- ...अधिकतम एक सिंचाई उपलब्ध होने पर नाइट्रोजन फास्फोरस पोटॉश की मात्रा 60:30:15 कि प्रति हेक्टेयर डाले।
- रबी फसल - चना
सुझाव
- कम और ज्यादा तापमान हानिकारक है।
- गहरी काली और मध्यम मिट्टी में बोनी करें।
- िट्टी गहरी,भुरभुरी होना चाहिए।
- प्रमाणित और अच्छी गुणवत्ता, अच्छी अकुंरण क्षमता वाले बीजों का उपयोग करें। अपने क्षेत्र के लिए अनुमोदित किस्मों का उपयोग करें।
- मध्य प्रदेश में अक्टूबर के मध्य में बोनी करना चाहिए।
- यदि सिंचाई उपलब्ध हो तो नवम्बर तक बोनी की जा सकती है।
- बीज शोधन के तीन दिन पहले बीज उपचार करना चाहिए।
- राइज़ोनियम से बीज शोधन करना चाहिए।
- यदि सल्फर और जिंक की कमी हो तो सल्फरयुक्त उर्वरकों और जिंक की उचित मात्रा डालना चाहिए।
- सुझाव के अनुरूप ही उर्वरकों का उपयोग करें।
- मिट्टी को ढीली और भुरभुरी करने के निदाई गुडाई करना चाहिए।
- बुआई के 30 से 35 दिन बाद तक खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए।
- यदि लौह की कमी हो तो एक हेक्टेयर में 3 किलो फेरस सल्फेट 600 मि.ली. टीपोल 600 लीटर पानी में छिडके।
- पानी का जमाव हो तो जल निकास की ब्यवस्था करें।
- कीडों से बचाव हेतू अनुकूल उपाय करें।
- चने के साथ निम्नलिखित फसलें इस अनुपात में उगाए
उर्वरक प्रबंधन
चना एक दलहनी फसल है जो वायुमण्डल से नाइट्रोजन को स्थरीकरण की क्षमता रखते है।
- फसल को कुछ नाइट्रोजन जीवाणु से मिल जाती है।
- बाकी नाइट्रोजन खाद इत्यादि से मिल जाती है।
- 20:50-60 :40 किलो एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर का उपयोग बुआई के समय करें।
- हर तीन साल में 15 से 20 बैलगाड़ी सड़ी गली खाद डालना लाभदायक रहेगा।
- अत्याधिक नाइट्रोजन से पौधे तो बढ़ते है परन्तु उपज कम हो जाती है।
- अंकुरण की अवस्था में नाइट्रोजन की कमी नहीं होना चाहिए जिससे नाइट्रोजन स्थरीकरण जीवाणु अच्छी तरह विकसित हो जाए।
सिंचाई प्रबंधन
- चने की खेती असिंचित फसलों के रूप में होती है, इसलिए अगर एक सिंचाई उपलब्ध हो तो हल्की सिंचाई की जा सकती है।
- अगर एक सिंचाई उपलब्ध हो तो फूल आने के पहले करनी चाहिए जिससे अच्छे फूल आए और अधिकतम उपज हो
-
रबी फसल - सरसों
अन्तर सस्य क्रियायें
- समय पर निदाई गुड़ाई से बीज और अनाज दोनों की उपज में वृध्दि होती है।
- सरसों के लिए विरलन और खाली स्थानों को बुआई के 15 से 20 दिन में भर देना चाहिए।
- फसल की प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार के प्रकोप से बचाना चाहिए।
- सरसों के पहले खरीफ फसल में कोई नत्रजन लेगयूमिनस फसल को उगाए जिससे लागत कम हो जाती है।
- बोनी के 50-60 दिन बाद निचली पत्तियों को हछा देना चाहिए ।
उर्वरक प्रबंधन
- अच्छी उपज के लिए फसल को उपयुक्त पोषक तत्व देने चाहिए।
- हर तीन साल में खेत को तैयार करते समय, उर्वरक देने के पहले 15-20 टन अच्छी सड़ी हुई खाद को मिट्टी में मिलाये।
- असिचिंत स्थितियों में 30 कि.ग्रात्र नत्रजन,20 कि.ग्रा. फास्फोरस और 10 कि.ग्रा. पोटॉश प्रति हेक्टेयर डाले।
या - असिचिंत स्थितियों में 65 कि.ग्रा. यूरिया, 125 कि.ग्रा. सुपरफास्फेट और 17 कि.ग्रा. पोटॉश का मुरेट प्रति हेक्टेयर डाले।
या - असिचिंत स्थितियों में 43 कि.ग्रा. डाइअमोनियम फास्फेट,50 कि.ग्रा. यूरिया, 17 कि.ग्रा. पोटॉश का मुरेट प्रति हेक्टेयर डाले।
- 2-3 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करें।
- गंधक की कमी वाली मिट्टी उपज कम होती है। अच्छी उपज के लिए 20-40 कि.ग्रा गंधक/हे के हिसाब से उपयोग करें।
- रबी फसल - अलसी
उर्वरक प्रबंधन
- सिंचित अलसी के लिए 60 कि.ग्रा. नत्रजन 30 कि.ग्रा. स्फुर एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश का उपयोग करें।
- असिंचित अलसी के लिए 40 कि.ग्रा. नत्रजन 20 कि.ग्रा. स्फुर एवं 10 कि.ग्रा. पोटाश का उपयोग करें।
सिंचित स्थितियों में बेसल मात्रा
नत्रजन 45 कि.ग्रा./हे
फास्फोरस 30 कि.ग्रा./हे
पोटॉश 20 कि.ग्रा./हे
बाद में पहली सिचाई के समय
नत्रजन 45 कि.ग्रा./हे
सुझाव
असिंचित गेहूँ के लिए
- कम और ज्यादा तापमान हानिकारक है।
- गहरी काली और मध्यम मिट्टी में बोनी करें।
- मिट्टी गहरी,भुरभुरी होना चाहिए।
- प्रमाणित और अच्छी गुणवत्ता, अच्छी अकुंरण क्षमता वाले बीजों का उपयोग करें। अपने क्षेत्र के लिए अनुमोदित किस्मों का उपयोग करें।
- मध्य प्रदेश में अक्टूबर के मध्य में बोनी करना चाहिए।
- यदि सिंचाई उपलब्ध हो तो नवम्बर तक बोनी की जा सकती है।
- बीज शोधन के तीन दिन पहले बीज उपचार करना चाहिए।
- यदि सल्फर की कमी हो तो सल्फरयुक्त उर्वरकों की उचित मात्रा डालना चाहिए।
- सुझाव के अनुरूप ही उर्वरकों का उपयोग करें।
- मिट्टी को ढीली और भुरभुरी करने के निदाई गुडाई करना चाहिए।
- बुआई के 30 से 35 दिन बाद तक खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए।
- पानी का जमाव हो तो जल निकास की ब्यवस्था करें।
- कीडों से बचाव हेतू अनुकूल उपाय करें।
- अलसी के साथ निम्नलिखित फसलें उगाए
- जब फली का रंग पीले से भुरा हो जाए एवं दाना चमकीला हो जाए तब कटाई करनी चाहिए।
- कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह सुखाए।
चने और अलसी
अलसी और गेहूं
- रबी फसल - कुसुम
उर्वरक प्रबंधन
- उर्वरकों के प्रयोग और सही देखभाल से करडी की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
- जुताई के बाद कम्पोस्ट डालना चाहिए।
- सिंचित अवस्था में 40 कि.ग्रा. नत्रजन 40 कि.ग्रा. फास्फोरस और 20 कि.ग्रा. पोटॉश /हे की दर से बोनी के पहले मिट्टी में मिलाए।.
- उर्वरकों का उपयोग बीज से 4 से 5 से.मी. दूर और 8 से 10 से.मी. गहराई से करना चाहिए।
- वर्षा वाले क्षेत्रों में नत्रजन 25 से 30 कि.ग्रा. /हे और 40 कि.ग्रा. फास्फोरस और 20 कि.ग्रा. पोटॉश /हे की दर से बोनी के पहले मिट्टी में मिलाए।
- उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण मान के आधार पर करें।
पोषण विकृति
- जानकारी उपलब्ध नहीं है
सिंचाई प्रबंधन
- यह फसल जमीन में से नमी अवशोषित कर लेती है। यदि एक सिंचाई उपलब्ध हो तो बोनी के तुरन्त बाद करें।
अन्तर सस्य क्रियायें
- अन्तरसस्य क्रियाओं में विरलन और रिक्त स्थानों को भरना शामिल है।
- अन्तरसस्य क्रियायें फसल के 10 से 15 दिन के हो जाने पर करना चाहिए।
- जिन स्थानों पर अंकुरण नहीं हुआ वहां उन ज्यादा पौधे वाले स्थानों से उखाड़कर लगाना चाहिए।
- रबी फसल - सूरजमुखी
अन्तर सस्य क्रियायें
- अन्त:सस्य क्रियाओं की आवश्यकता पौधे की प्रांरभिक अवस्था में होती है।
- सस्य क्रियाओं में विरलन और रिक्त स्थानों को भरना आदि रहता है।
- पौधे के विकास के 40-50 दिन तक फसल को खरपतवार से मुक्त रखें।
- रबी फसल नींदाओं के प्रति संवेदनशील होते है इसलिए स्वच्छ खेती करें।
उर्वरक प्रबंधन
- सूरजमुखी में पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती है।
- बोनी के पहले 10 से 12 टन कम्पोस्ट या अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद को प्रति हेक्टयर की दर से तीन साल में एक बार डालें।
- 60-80 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस और करीब 40 कि.ग्रा. पोटॉश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाले।
- उर्वरकों को भूमि में बीज से 2.5 से.मी. नीचे और 5 से.मी. दूर डाले जिससे पौधा इन्हें अच्छी तरह अवशोषित कर सके।
- यदि मिट्टी में गंधक,जिंक और बोरॉन की कमी हो तो मिट्टी परीक्षण के आधार पर अनुमोदित मात्रा दें।
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